तलाश

bhaatdaal

ज़िन्दगी एक तलाश ,क्या मिलोगे कभी ?
मिल गए तो वो ख्वाब ,क्या अपनाओगे भी?
पा लिया अब उसे ,मेरी ख़ुशी का अंदाज़ा नहीं,
ज़िन्दगी, फिर एक डर कहीं खो न दें कभी …,
सहज असहजता है ज़िन्दगी का सबब
न मिले तो पाने का, मिले तो खोने का डर
,
स्वप्न निवेदिता के , ये निवेदन है प्रभो!!
जो बुनेे हैं जतन से स्वप्न उन्हें कभी खो न दूँ
सुबह तुमसे और बस तुम्ही से हो हर रात मेरी
तुझे खोने और पाने के बीच ज़िन्दगी वो भंवर
जहाँ हक़ निवेदन से माँगा और और किया तेरी नज़र
निवेदिता की ज़िन्दगी चल पड़ी तुम्हारी डगर।। … निवेदिता

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